बंदर का धंदा
इस कविता मे कवीने वन प्राणियों के माध्यम से जडी बुटीयो के लाभ के बारे मे बताया है. कविता उद्देशपूर्ण तो है ही. साथी ही मनोरंजक भी है.
जंगल मे रहने वाले एक बंदर को एक दिन कही से डॉक्टर का एक तुटा फुटा स्टैथेस्कोप मिल गया. वह कही से एक कुर्सी और एक मेज ले आया और एक पेड के नीचे रखकर उसने अपना दवाखाना खोल लिया.
सबसे पहले एक भालू आया और बोला की मुझे खासी और जूकाम है. बंदर ने उसे तुलसी के पत्ते और पीपल की जड देते हुए कहा कि इनको पानी मे उबालकर सुबह शाम पीना. जब खांसी जुकाम बिलकुल ठीक हो जाये तभी मुझे फीस देना.
एक बिल्ली आई और कहेने लगी की मुझे एक सो चार बुखार है. मेरा बुखार जल्दी ठीक करो.जिससे की में शिकार पर जा सकु. बंदर ने कहा तुम दिन मे तीन बार गीलोय का रस पीना तुम इतनी स्वस्त हो जाओगी की चाहो तो कल से ही डांस कर सकोगी.
तभी एक लोमडी आई और कहने लगी मुझे ऐसी दवा दो जिसे मेरी त्वचा चिकणी और सुंदर हो जाये और मे सबसे सुंदर दिखू . बंदर ने कहा तुम सुबह शाम दोनो समय अपने चेहरे पर घी कुआर लगाओ. तुम्हारा चेहरा कुंदन जैसा चमकने लगेगा. तभी मुझे फीस दे ना.
इस प्रकार जंगल मे बंदर की डॉक्टरी अच्छी तरह से चलने लगी. वह नित्य जंगल से अच्छी अच्छी जडीबुटीया लेकर आता और खूप मौज मनाता.
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