नदी कंधे पर
यह कविता कल्पना पर आधारित है. कवि कल्पना करते है की यदी हम नदी को कंधेपर उठाकर अपने घर ले आते तो कैसा आनंद आता.
यदि हमारा वश चलता तो हम नदी को उठाकर घर ले आते और रोज अपने घर के सामने से बहाते हम अपने मित्र के साथ नदी मे खूप उछलते कुदते और देर तक नहाते.
हम कभी नदी मे देर तक तैरते कभी डुबकीया लगाते कभी पानी की सतह पर आ जाते. खूब मस्ती करते गाणे गाते. अपने सभी परीचितो को आमंत्रित करते और करवाते की नदी मेरे घर के पास आ गई है सब लोक नहाने चलो जितने भी लोग हमारे बुलाने पर आते है हम सभी सजनो का नदी से परिचय करवाते.जब कभी हमारी मन मे नदी को पार करने का विचार आता तो हम तुरंत नदी पार कर लेते.
तब हम नदी की दुसरे और खडे होकर जोर जोर से मा को आवाज लगाते खूप चिल्लाते जब शाम रात मे बदलने लगती मित्रु की सहायता से नदी को अपने कंधे पर रखवाते और वही ले जा कर उसे रख आते जहासे लाए थे.
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