बसंत गीत
कविवर चंद्रप्रकाश चंद्र बसंत ऋतु के आगमन पर प्रकृती मे होनेवाले परिवर्तन का वर्णन कर रहे है. इस ऋतू मे जिधर भी दृष्टी जाती है चारो और सौंदर्य सुगंध और उल्हास का वातावरण रहता है.
वसंत ऋतु सज धज कर आ गई है सब बसंत के गीत गाओ. कलिया क्रीडा कर रही है फुल ऐसे लग रहे है मानो मंद मंद मुस्कुरा रहे हो. भौरे गुन गुन गुंजार कर रहे है. और इधर से उधर उडकर फुलो का रस पी रहे है.
वसंत ऋतु सज धज कर हा गई है सब बसंत के गीत गाओ.
वनो मे बाग बगीचे मे मनमोहक सुगंध उड रही है. मोर ठुमक ठुमक कर नाच रहे है. और कोयल मधुर गीत गा रही है.
बसंत ऋतु सज धज कर गई है सब बसंत के गीत गाओ.
खेतो मे हर तरफ सरसो के पीले पीले फुल दिखाई पड रहे है. आम पर बौर आ गये है.मटर की फलिया इतनी अधिक है की ऐसा लगता है मानो किसी ने हरा बिछोना बिछा दिया हो. और उस पर बहुत से रंग बरसा दिये हो.
बसंत ऋतु पर आ गई है सब बसंत के गीत गाओ.
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