हम चलते सीना तान के
प्रस्तुत कविता मी कवीने देश प्रेम बंधुत्व समानता आधी भाव के विषय में बताया है है हमारे धर्म का अलग है हमारी जाती या अलग है. हमारे वर्ण अलग है हम अलग भाषा ही बोलते है हम अलग अलग हम प्रांतो तो से आये है कोई पर्वतीय क्षेत्र से आया है कोई सागर तटीय क्षेत्र से आया है कोई रेगिस्तान से आया है कोई मैदानी क्षेत्र से आया है परंतु हम सब भारतीय सेना की वर्दी मे सजे हिंदुस्तानी है हमे अपने भारतीय होने पर गर्व है भारत माता के सपुत हम गर्व से सीना तान कर चलते है.
अपने देश के जिस मिट्टी से हमारा पालन-पोषण हुआ है जिस मातृभूमी कि मिट्टी मे खेल कूद कर हम बडे हुए है जिस मिट्टी ने हमे अपनी गोद मे ममता समानता से पाला है हमे उस पवित्र माती का कर्ज चुकाना है उसके लिये हम कुछ भी कर सकते है भारत माता के सपुत हम गर्व व से सीना तान कर चलते है.
शताब्दी से हमारे पूर्वज ने भारत माता की चरनो मे अपने परिश्रम रुपी पुष्प चढाई है जिसकी रक्षा के लिए न जाने हमारी कितने पुरखोने हस्ते हस्ते अपने जान दी है हम उसी भारत माता के गौरव और सम्मान के रक्षक है हमारे रुदय मे साहस की कमी नही है भारत माता के सपुत हम गर्वसे सीना तान कर चलते है.
युद्ध भूमी मे लडते लडते हम भलेही गिर जाये परंतु अपने प्यारे तिरंगे को कभी गिरने नही देंगे हम चाहे मातृभूमी की रक्षा करते करते मिट जाये देश के लिए शहीद हो जाये परंतु अपने प्यारे देश पर कभी भी आच नही आने देंगे हम बलिदान के अवसर पर सबसे आगे रहते है भारत माता के सपुत हम गर्व से सीना तान कर चलते है.
हम भारतीय सैनिक युद्ध भूमी मे जीस विवेक और वीरता का प्रदर्शन करेंगे गाव गाव नगर नगर घर घर मे उनकि गाथाये गायी जाएगी अनगिनत कंठो से हमारी वीरता और हमारे बलिदान के गीत गाये जायेंगे भारत माता के सपुत हम गर्व से सीना तान के चलते है.
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